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1. कहानी: “वो आदमी जो हर दिन हारता था… मगर टूटता नहीं था”

शहर के एक छोटे से कमरे में रहने वाला असीम हर रात सोचता—
“शायद कल मेरा दिन होगा…”
लेकिन हर सुबह वही संघर्ष, वही भागदौड़, वही निराशा।

उसके पास न बड़ी डिग्री थी, न कोई सिफ़ारिश।
उसके पास बस एक ईमानदार कोशिश थी।

एक दिन उसके दोस्त ने कहा—
“तू हर रोज़ एक जैसी कोशिश करता है और हर दिन हार जाता है।”

असीम मुस्कुराया—
“हारता हूँ, लेकिन रुकता नहीं। अंत में वही जीतता है जो चलता रहता है… तेज नहीं, बस चलता रहता है।”

समय लगा…
काफी लगा…
पर एक दिन उसे एक ऐसी नौकरी मिली जहाँ उसकी मेहनत की कद्र थी।

लोगों ने कहा—
“तू किस्मत वाला है।”
असीम ने सोचा—
किस्मत नहीं…
हार न मानने की आदत किस्मत बनाती है।


2. कहानी: “बूढ़े रिक्शावाले की समझदारी”

मैं रोज़ एक बुज़ुर्ग रिक्शावाले को देखता था।
थका हुआ शरीर, काँपते हाथ, मगर चेहरे पर एक अजीब सुकून।

एक दिन मैंने पूछा—
“बाबा, आप आराम क्यों नहीं कर लेते? ज़िंदगी भर मेहनत की है।”

वह हँसे और बोले—
“बेटा, जिंदगी कमाने से नहीं चलती… चलने से चलती है।
रुक जाऊँगा तो शरीर भी रुकेगा, दिमाग भी, उम्मीद भी।”

मैं हैरान था।
हम लोग आराम चाहते हैं,
और वह आदमी थककर भी चलना चाहता था।

उस दिन मुझे समझ आया—
जिन लोगों ने दर्द को मंज़िल बनाकर स्वीकार कर लिया,
वे लोग कभी हारते नहीं…
वे बस हल्के हो जाते हैं।


3. कहानी: “जीतने वाले की नहीं, रुकने वाले की कहानी”

एक छोटे से गाँव का लड़का शहर आया।
जिंदगी ने उसे हर तरफ़ से धक्का दिया—
पैसे नहीं, रहने की जगह नहीं, काम नहीं।

कई बार उसने सोचा—
“वापस घर चला जाऊँ?”
पर फिर वो अकेले कमरे में खुद से कहता—
“आज नहीं… सिर्फ़ आज नहीं हारूँगा।”

दिन-ब-दिन, कोशिश-से-काम,
वह एक छोटी दुकान पर हेल्पर बन गया।

दो साल बाद वही लड़का
उस दुकान का मैनेजर था।

लोगों ने पूछा—
“तूने क्या खास किया?”
वह बोला—
“जो लोग हार जाते हैं, उनकी कहानी वहीं खत्म हो जाती है।
मेरी कहानी इसलिए चली…
क्योंकि मैं रुका नहीं।”


4. कहानी: “अनजान यात्रियों की दया”

रेलवे स्टेशन पर एक बुज़ुर्ग औरत अकेली बैठी रो रही थी।
हर कोई पास से गुजर रहा था,
किसी ने देखने की कोशिश नहीं की।

फिर एक मजदूर आया—
कपड़े मैले, हाथ गंदे, शायद खुद कई परेशानियों से भरा हुआ।
उसने पूछा—
“मांजी, क्या हुआ?”

वह रोते हुए बोली—
“पर्स खो गया… घर जाने के लिए पैसे नहीं।”

मजदूर ने बिना सोचे अपनी दिनभर की मजदूरी
उसके हाथ पर रख दी।
और बोला—
“जाइए मांजी… घर पहुंच जाइए।
पेठ तो कल भी भर जाएगा।”

उस औरत ने रोते हुए कहा—
“तुम मेरे कौन हो?”
मजदूर मुस्कुराया—
“बस एक इंसान…
आजकल मिलते कहाँ हैं?”


5. कहानी: “वो बच्चा जो दुनिया से नहीं डरता था”

एक बच्चा स्कूल में हमेशा चुप बैठता था।
टीचर ने एक दिन पूछा—
“बोलते क्यों नहीं हो?”

वह बोला—
“क्योंकि सब बोलते हैं… सुनता कोई नहीं।”

टीचर चुप हो गई।
उस बच्चे ने कम उम्र में ही वह सीख ली
जो बड़े लोग उम्रभर में नहीं सीख पाते—
शोर में समझ नहीं होती।

वह जिंदगी भर कम बोला,
ज्यादा सुना।
और एक दिन वही बच्चा
सबका पसंदीदा बना…

क्योंकि लोग सुनने वालों को भूलते नहीं।


6. “क्यों आज की दुनिया में सरल इंसान दुर्लभ हो गए हैं?”

सरल होना आसान लगता है,
लेकिन आज की दुनिया में यह सबसे मुश्किल काम है।

लोग चालाकी को स्मार्टनेस समझते हैं।
झूठ को जरूरत,
और वादों को मज़ाक।

सरल इंसान भरोसा रखता है—
इसमें उसकी गलती नहीं,
उसकी परवरिश होती है।

दुनिया उसे कमजोर समझती है,
लेकिन असल में वही सबसे मजबूत होता है,
क्योंकि छल करना उसके बस की बात नहीं।

सरल लोग इसलिए दुर्लभ हो गए,
क्योंकि इस दुनिया में
भावनाएँ खर्च होती हैं,
और चालाकी चलती है।


7. “कभी-कभी दूरी बनाना ही खुद को बचाना होता है”

हर रिश्ता मीठे शब्दों पर नहीं चलता।
कभी-कभी लोगो की आदतें,
उनकी नकारात्मक ऊर्जा,
उनका व्यवहार
दिल की शांति छीन लेता है।

दूरी बनाना बुरा नहीं,
यह आत्म-सुरक्षा है।

जो लोग समझदारी से दूरी बनाते हैं,
वही लंबे समय तक मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

दूरी का मतलब नफ़रत नहीं—
बस इतना है कि
आप खुद को खोना नहीं चाहते।


8. “हमारी सबसे बड़ी गलतफहमी — लोग हमेशा साथ रहेंगे”

हम सोच लेते हैं कि
कुछ लोग जिंदगी भर साथ रहेंगे।
लेकिन सच्चाई यह है—
लोग बदलते हैं,
हालात बदलते हैं,
रिश्ते भी।

सबसे स्थायी चीज़ सिर्फ़ एक है—
आपकी अपनी मेहनत,
आपका खुद का चरित्र।

लोग साथ हों या न हों,
जीवन चलता रहता है।
मजबूत वही है
जो अपने पैरों पर खड़ा रहना सीख लेता है।


9. “क्यों चुप लोग बहुत गहरे होते हैं?”

चुप रहने का मतलब डर नहीं होता।
चुप रहने का मतलब है
व्यक्ति भीतर की दुनिया में जी रहा है।

चुप लोग ज्यादा महसूस करते हैं,
ज्यादा सोचते हैं,
थोड़ा बोलते हैं
लेकिन सही बोलते हैं।

वे हर दर्द को शब्द नहीं देते,
इसलिए उनके भीतर एक किताब छिपी होती है।

चुप लोग कभी कमजोर नहीं—
वे बस शोर पसंद नहीं करते।


10.  “गिरना बुरा नहीं… उठना बंद कर देना बुरा है”

हम जिंदगी में रोज़ गिरते हैं—
कभी सपने टूटते हैं,
कभी विश्वास,
कभी अपनी ही उम्मीदें।

लेकिन गिरना आपको रोकता नहीं,
रोकता है—
उठने से इनकार करना।

सफल लोग और आम लोग
बस एक लाइन से अलग होते हैं—
सफल लोग हार मानते नहीं।

कदम धीमे हों तो चलेगा,

रुकना नहीं चाहिए। 

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